गजल
जानी जानी नाङ्गिदै छौ आज भोलि शहरमा।
स्वार्थ तिरै झाङ्गिदै छौ आज भोलि शहरमा।।
हिजो गाउँ बस्ती भरी मगन्तेको भेष लाई।
किन बिर्सी बाङ्गिदै छौ आज भोलि शहरमा।।
ईज्जत् अनि प्रतिश्ठाको होलि खेली बेपर्वाह।
शूलि माथी टाङ्गिदै छौ आज भोलि शहरमा।।
एक जाती एकै धर्म संस्कार र संस्कृति हो।
तर किन हाङ्गिदै छौ आज भोलि शहरमा।।
गोविन्द फुयाल, अमेरिका।
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